नकारात्मक सोच से छुटकारा How to Overcome Negative Thoughts in Hindi
हम सब की जिंदगी एक गाड़ी की तरह है और इस गाड़ी का शीशा हमारी सोच, हमारा व्यवहार, हमारा नजरिया है
बचपन में तो यह शीशा बिल्कुल साफ़ होता है, एकदम क्लियर। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते है। हमारे आस-पास के लोगों की वजह से, हमारे वातावरण की वजह से, हमारे अपनों की वजह से हमारा खुद के बारे में विश्वास बदलता जाता है।
मतलब इस शीशे पे लोगो की वजह से, वातावरण की वजह से, अपनी वजह से धूल, मिटटी, कचरा जमता जाता है। और इस धूल से भरे, मिटटी से भरे, कचरे से भरे शीशे को हमने अपनी हकीकत मान ली है। कहीं न कहीं हम उस शीशे को साफ़ करना भूल गये हैं।
हम कुछ मान कर बैठे है, कुछ इच्छाओं के सामने हार मान ली है, कुछ सपनों को हमने छोड़ दिया है। कुछ बातों को हमने मान लिया है।
जैसे किसी को लगता है कि मैं बिज़नस नहीं कर सकता हूँ क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं हैं (खुद का बनाया हुआ विश्वास)।
किसी को लगता है कि मैं अच्छे मार्क्स नहीं ला सकता क्योंकि मैं हमेशा एक एवरेज स्टूडेंट रहा हूँ तो यह है खुद का बनाया हुआ विश्वास.. उस शीशे को कभी साफ करने की कोशिश नहीं की, उस विश्वास को कभी तोड़ने की कोशिश नहीं की।
कोई कहता है:
मैं अच्छा सेल्समेन नहीं बन सकता क्योंकि मेरा बात करने का तरीका अच्छा नहीं है, मैं बिजनेसमैन नहीं बन सकता, मैं एक अच्छा पति नहीं बन सकता, मैं एक अच्छा अध्यापक नहीं बन सकता
मुझे एक एवरेज लाइफ ही बितानी है क्योंकि मेरे में कुछ खास नहीं है, मैं अमीर नहीं हो सकता क्योंकि मेरी किस्मत ख़राब है, मैं बड़ा नहीं सोच सकता क्योंकि बड़ा सोचना वास्तविक नहीं होता।
यह आपकी सोच का शीशा है न, ये ख़राब इसलिए है क्योंकि आपने इसे ख़राब होने दिया है।
बचपन में यह शीशा सबका साफ़ होता है। जब आपने चलने की कोशिश की थी, जब चलना शरू किया था तो आप गिरे थे और गिरने के बाद आपने किसी पर आरोप नहीं लगाया था, बहाने नहीं बनाये थे। आपने यह नहीं कहा था कि मैं इसलिए गिर गया क्योंकि कारपेट अच्छा नहीं है, मैं इसलिए गिर गया क्योंकि इसमें सीढियों का कसूर है या फिर अपने मम्मी-पापा के ऊपर ऊँगली नहीं की थी कि मैं इसलिए नहीं चल पाया या इसलिए गिर गया क्योंकि इनको मुझे सिखाना नहीं आया, ये मुझे चलना नहीं सिखा पाए।
जब आप गिरे आपने फिर से उठने की कोशिश की, फिर गिरे और फिर उठे और तब तक कोशिश करते रहे जब तक आप सफल नहीं हुए, जब तक आप चलना सीख नहीं पाए।
यार तब किसी को दोषी क्यों नहीं ठहराया, तब बहाने क्यों नहीं मारे बताओ तब क्या हुआ था?
और अगर तब नहीं किया तो अब क्यों?
सोचो
क्योंकि तब आपकी सोच का शीशा बिलकुल साफ़ था। वो बहाने नहीं ढूढता था, वो लोगो को बातो में नहीं आता था, बस वो अपने आप को दूसरों से कम नहीं समझता था इसलिए वो कभी हार नहीं मानता था और तब तक कोशिश करता था जब तक आपको सक्सेस नहीं मिलता।
और फिर?
फिर आप बड़े होते गये। लोगों की बातों का आप पर असर होता गया। आस पास के नकारात्मक (नेगेटिव) माहौल का आप पर असर होता गया। लोगो की बताई बातें, लोगो की फेंकी हुई मिट्टी, कचरे और धूल की वजह से आपकी सोच का शीशा गन्दा होता गया और आपकी गाड़ी की स्पीड कम होती गई और अब आप देख भी नहीं पा रहे। आप ढंग से देख भी नही पा रहे अपनी योग्यता को, अपनी क्षमता को और जितना देख पा रहे हो उसी को अपनी जिंदगी समझ रहे हो। उसी को अपनी क्षमता समझ रहे हो।
अब मेरी बात सुनो
अगर सच में, सच में अपनी जिन्दगी को बदलना चाहते हो, सच में अपने सपने को पूरा करना चाहते हो तो एक बार इस धूल को, इस मिट्टी को हटा कर तो देखो। एक बार इस शीशे को साफ़ करके तो देखो ये लोगो की वजह से आई हुई मिट्टी है, ये हट सकती है और आपकी जिंदगी बदल सकती है।
बस एक बार विश्वास करके इस शीशे को साफ़ करके एक बार खुद को जान कर पहचान कर खुद पर भरोसा करके देखो। आपके सपने पूरे होंगे क्योंकि आपके पास उसको पूरा करने की क्षमता है, आप उसको पूरा करने के योग्य हो।
अब यह मैं नहीं कर सकता? मैं कैसे कर सकता हूँ? इस सोच को बदल दो , फिर देखना कैसे समस्या के हल मिलेंगे।
जैसे: मैं एक अच्छा स्टूडेंट नहीं बन सकता। इसको बदलो कि मैं एक अच्छा स्टूडेंट कैसे बन सकता हूँ। फिर मिलेंगे आपको हल, आईडिया आने शुरू हो जायेंगे|
मैं एक अच्छा मैनेजर, अच्छा सेल्समेन नहीं बन सकता.. इसको बदलो कि मैं एक अच्छा मेनेजर या सेल्समेन कैसे बन सकता हूँ। वो विश्वास रखो और फिर देखना कैसे आपको हल मिलना शुरू होंगे
जब आपके अन्दर विश्वास होगा कि मैं इसे कर सकता हूँ। मुझे ये करना है, कैसे करना है, आपको अपने आप हल मिलेंगे।
आज के बाद कोई भी बात आपके दिमाग में आये तो नेगेटिव होने की बजाय, उस शीशे के ऊपर लगे कचरे को देखने की बजाय.. उस कचरे को साफ़ करो। यह मत सोचो मैं नहीं कर सकता.. सोचो कि मैं कैसे कर सकता हूँ? मुमकिन कैसे होगा?
फिर देखना आपको हर बात पे हल मिलना शुरू हो जायेंगे। गाडी का शीशा और साफ़ होता जाएगा, रास्ता और साफ़ होता जाएगा और आपके गाडी की स्पीड बढती जाएगी-बढती जाएगी, जिंदगी का विकास बढ़ता जाएगा, जिंदगी में कामयाबी मिलती जाएगी।
तो आज के बाद वादा करो कि आप सोच के शीशे पे मिट्टी नहीं जमने दोगे। कचरा नहीं जमने दोगे। खुद के साथ वो वादा कर लो कि आप अपने आप पर पूरा भरोसा रखोगे। एक वादा कर लो कि आप बहाना ढूंढने के बजाए हल निकालोगे। इस पोस्ट के निचे कमेंट में लिख दो कि हम आज के बाद अपनी सोच के शीशे को साफ़ रखेंगे। लोगों की बातों की वजह से, माहौल की वजह से, नेगेटिव लोगों की वजह से उस के ऊपर मिट्टी नहीं जमने देंगे, कचरा नहीं जमने देंगे।
बस वो वादा कर लो अपने साथ कि आप खुद पर पूरा भरोसा रखोगे वो भी 10% नहीं.. 30% नहीं.. 99% भी नहीं.. 100% विश्वास खुद पे, 100% कॉन्फिडेंस खुद पे, 100% यकीन खुद पे..
जाओ और अपनी जिंदगी जिओ
[All The Best..]
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