सपनों में वो आती है , नींदें मेरी चुराती है क्या वो मेरी मंजिल नही है जो मुझे रोज एक नई आस दे जाती है उसके सपनों में मैं खोया रहता हूं, आसमान के नीचे मुस्कुराते हुए सोया रहता हूँ दिन रात ख़यालों में उलझा रहता हूँ फिर भी सुलझा हुआ मैं रहता हूँ एक परी सी चंचलता है उसमें , कलियों सी मुस्कान है उसके बिना लगे है मुझे हर गली सुनसान है।।





तेरे लबों पर से मुझे हँसी भेज दे फिर चाहे दुनिया की हर ख़ुशी लेले | तेरी दूरी से अंधेरा छाया है! कैसे पढ़ूँगा तेरा ख़त?? लिफ़ाफ़े में तेरे मुस्कान की कुछ रौशनी भेज दे !!!




आप हंसो तो खुशी मुझे होती है, आप रूठो तो आँखे मेरी रोती है, आप दूर जाओ तो बेचेनी होती है, महसूस करके देखो प्यार मे ज़िंदगी कैसी होती है!!




Likhna tha Khush Hai Tere bagair yaha Hum... Magar kambkhat Aansu Hai Ki Kalam Se Pehle he chal diye





उसे इज़हार - ए - इश्क़ में ज़रा वक़्त लगता हो सकता है

वो कुछ देर से कहता मैं ही जल्दी चला आया हो सकता है
शायद मुझे ही सलीका ना आया हो मिलने का किसी से भी
मैं सोचता हूँ जितनी उतनी बुरी ना हो दुनिया हो सकता है
उसे जो रास आ गई किसी और की मोहब्बत तो रंज कैसा
मैंने ही कहीं उसे उस की तरह ना हो चाहा हो सकता है
दिल जिस के साथ सोच के बैठा है अब अफ़साना तमाम
उसके साथ लिखा हो कोई और भी किस्सा हो सकता है
बे-ख़ुदी ने मुझे तेरे बाद भी तेरा रखा हुआ है अब तलक
वर्ना शहर-ए-हुस्न की बरहनगी ही मैं देखता हो सकता है



तुम आँसू को महज़ आंसू ना समझो 
हर आँसू में इक हसरत निकलती है



मुद्दतों से  बहाए जा रहा हूँ  मैं  आँसू 
आँखों में समंदर नहीं तो और क्या है



आँसुओं का दिखावा ना कर ग़म का हवाला ना दे 
फ़रियाद-ओ-बुका से तौहीन-ए-मोहब्बत ना कर


उसी में डूब गयी हैं सब उम्मीदें  
जिस आँसू को पानी समझते थे


बे-आँसू रोने का भी खूब हुनर आता है मुझे 
मेरे चेहरे से मेरा हाल नहीं जान सकते तुम


मैंने दिल में जो आँसू बरसों बोये थे 
आँखें वही  आँसू  अब उगा रही हैं


तुझे अब भी गाहे-गाहे जब भी याद करता हूँ 
पलकों पे आ ठहरता है आँसू का इक क़तरा


ना  दिन को ना  शब  को सोती हैं 
हमारी आँखें बे-आँसू बस रोती हैं


मेरी आँख के सैलाब से घबराया है समंदर
मेरा बस इक  आंसू  हर मौज  पे भारी है


जिस तरह से आंसू रोके हुए हूँ मैं अपनी आँख में 
देख लेना तुम बादल हो जाऊंगा कुछ दिनों में


गाहे-गाहे बदहवासी भी अच्छी लगती है 
तेरी दी हुई उदासी भी अच्छी लगती है
जाने कैसा ये तिलिस्म है तेरे हुस्न में 
बदन की खुशबू बासी भी अच्छी लगती है
दूरियां बड़ा रही हैं मुसलसल मोहब्बतें 
इसीलिए रूह प्यासी भी अच्छी लगती है
दौरे - ग़म में इक दौर वो भी आता है  
जिस दौर में उदासी भी अच्छी लगती है
.मोहब्बतों का गुमाँ रखे कभी गैर भी करे 
तेरी नज़र ये सियासी भी अच्छी लगती है


वीरां – दिल के  वन  में  तेरी  खुशबू  महका करती है 
मन के  इन  गलियारों  में  तेरी  याद टहला करती है
तेरे   चर्चे   होते   रहते   हैं,   हर   बाग –  बगीचे  में 
इक  तितली  तेरे  बारे  में  फूलों   से  पूछा  करती  है


करीने से सजा के अलमारियां उसने 
साड़ी से बाँध ली हैं चाबियाँ उसने 
अब मैं संभालुंगी घर को कह कर 
कान से उतार दी हैं बालियाँ उसने


बिस्तर की सिलवटों में सिमट जायें हम 
आ किसी रोज़ हद से गुज़र जायें हम
बर्फ से हुए पड़े हैं जो ये बदन हमारे 
ये पिघल जायें जो अगर मिल जायें हम


ये  रात  है या जलवा तुम्हारा कोई
ये ज़ुल्फ़ है या बादल आवारा कोई
दिलों पे चलती है छुरियों की तरह
ये तेरी नज़र है या हथियारा कोई


तेरे  ये  ख्याल, अहबाब  हैं उजालों के 
तेरे ये ख्वाब, महबूब  हैं  मेरी रातों  के 
बंद कमरे के इन सियाह अंधियारों में 
जगमगाते रहते हैं जुगनू तेरी यादों के



कलम की  नोक  पे  कहानी रखी है
मैंने इक  ग़ज़ल तुम्हारे सानी रखी है
(सानी - match, equal)
इन  आँखों  को अब  क्या  कहें  हम
दो  प्यालों में  शराब  पुरानी  रखी है
और कुछ नहीं  मुझ  शायर  के पास
तुम पे लुटाने को बस जवानी रखी है
तेरी  इक  तस्वीर  है  मेरी  आँखों में
और बस यही  इक  निशानी रखी है
क़ैस-ओ-कोहकन  मिटे थे  जिस पे
तेरे हुस्न में वही अदा पुरानी रखी है
(क़ैस-ओ-कोहकन-- मजनूँ और फरहाद)



रख दे मेरे होंठों पे अपने होंठ तो लगता है 
के मैं सुर्ख दो गुलाब ओढ़ के सोया हूँ



इस इश्क़ के होने भर से ही
चलो   कोई   तो   मसला है




नायाब किया इश्क़-ओ-सुखन ने हमारे 
अब खुद ही पे मर जाने लगा है वो






बस जाँ से चले जाएं तो अच्छा है मगर 
इससे पहले भी अंजाम हैं कई इश्क के



वादी-ए-इश्क से इक सदा आती है हर रोज़ 
दिल के उजड़ने का हमें भी मलाल है बहुत



इश्क़ पे मुकदमा अगर चले तो
मेरा भी नदीम कभी मुद्दा रखना



ऐ इश्क दिल ने तेरा क्या बिगाड़ा है 
तू क्यूँ इतने ग़म दिए जा रहा है




ये इश्क़ था या कोई बला जा’ना
ये क्या  हाल हमने  बना  लिया



इश्क़ की इन्हीं हसीं राहों पे कभी 
“आकाश”  बिछड़ा था दिल  मेरा



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